इस खोज के शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि ये अपरिपक्व शुक्राणु कोशिकाएं पाँच साल के भीतर पूरी तरह से परिपक्व हो सकती हैं. यदि ऐसा होता है तो यह खोज प्रजनन से जुड़ी समस्याओं के इलाज में बहुत कारगर साबित होगी.
यूरोप के गौटिंजेन और मूंस्टर विश्वविद्यालय और मेडिकल स्कूल ऑफ़ हैनोवर के शोधकर्ताओं ने पुरुष की अस्थि-मज्जा से वयस्क स्टेम सेल को अलग कर यह प्रयोग किया है.
हालांकि विशेषज्ञों की राय है कि ये परिणाम अभी शुरुआती दौर के हैं और इसकी व्याख्या संभलकर करनी चाहिए.
उनका यह भी मानना है कि ब्रिटेन में प्रस्तावित नए क़ानून में प्रजनन संबंधी इलाज के लिए इसके प्रयोग पर पाबंदी लग सकती है.
ग़ौरतलब है कि सरकार ने हाल ही में प्रजनन में सहायक कृत्रिम तरीक़े से बनाए गए शुक्राणु और अंडाणु के प्रयोग पर रोक को अपने श्वेत पत्र में शामिल किया है.
'सावधान रहें'
शोधकर्ताओं ने पुरुष की अस्थि-मज्जा से वयस्क स्टेम सेल को अलग कर यह प्रयोग किया.
यह पहला मौक़ा है जब कृत्रिम तरीके से मनुष्य की अपरिपक्व शुक्राणु कोशिकाएँ बनाने की बात सामने आई है.
ये वे कोशिकाएं हैं जो खोज के दौरान अपरिपक्व से परिपक्व कोशिकाओं में तब्दील होंगी.
यूनिवर्सिटी ऑफ शेफील्ड में सेंटर फॉर स्टेम सेल बॉयलॉजी के प्रोफेसर हैरी मूर ने बताया, ''इस खोज के परिणाम काफ़ी रोचक है लेकिन इसकी व्याख्या करते समय हमें सावधान रहना चाहिए.''
वे कहते हैं कि शुरुआती परिणाम भटकाने वाले भी हो सकते हैं क्योंकि खोजकर्ता बारीकी से जाँचने पर अपरिपक्व कोशिकाओं के वयस्क प्रजनन कोशिकाओं में बदलाव को सही तरीक़े से साबित नहीं कर पाए हैं.
वहीं इस शोध से जुड़े नॉर्थ-ईस्ट इंग्लैंड स्टेम सेल इंस्टीट्यूट के अग्रणी खोजकर्ता प्रोफ़ेसर करीम नयेरिना परिणाम से काफ़ी उत्साहित हैं और आशा जताई कि इससे एक दिन प्रजनन अक्षमता वाले नौजवानों का इलाज संभव हो सकेगा.
ब्रिटिश फ़र्टिलिटी सोसायटी के सेक्रेटरी डॉक्टर एलन पासी का भी मानना है कि इस तरह की खोज शुक्राणु बनने की जीव वैज्ञानिक प्रक्रिया को समझने में मददगार होगी.
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