नई दिल्ली। भारत की आबादी एक अरब से अधिक है और इनमें एक फीसदी से ज्यादा यानी तकरीबन 1.5 करोड़ लोग मस्तिष्क क्षति के शिकार हैं जिससे उनकी मानसिक और शारीरिक क्षमता प्रभावित हो रही है। ज्यादातर लोग इस समस्या को गंभीरता से नहीं लेते, जबकि इसका इलाज संभव है।
मस्तिष्क क्षति के शिकार लोगों के इलाज के उपलब्ध तरीकों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए 15 सितंबर से तीन दिवसीय सम्मेलन द उड़ान: न्यूरल रिपेयर एंड न्यूरो रिहैबिलिटेशन का आयोजन किया जा रहा है।
डा. अरुण मुखर्जी के अनुसार मस्तिष्क क्षति की वजह से कई बार मस्तिष्क का शारीरिक नियंत्रण कमजोर हो जाता है जिसे सेरीब्रल पाल्सी कहा जाता है। उन्होंने बताया कि बच्चों में मस्तिष्क क्षति के फलस्वरूप तंत्रिका संबंधी कई तरह की विकृतियां, आस्टिम स्पेक्ट्रम डिस्आर्डर, सेरिब्रल पाल्सी, मल्टीपल हैंडीकैप, डायलेक्शिया और मस्तिष्क आघात जैसी समस्याएं हो सकती हैं। कई बार बच्चों की सुनने की क्षमता भी इससे प्रभावित हो जाती है।
डा. मुखर्जी के अनुसार इन समस्याओं की मामूली सी शुरुआत बच्चों को मानसिक विकलांगता की ओर धकेल सकती है इसलिए समय रहते इनका इलाज जरूरी है। ये समस्याएं लाइलाज नहीं होतीं।
डा. मुखर्जी के अनुसार कई बार मस्तिष्क क्षति की वजह से अनुवांशिक समस्या जैसे डाउन सिंड्रोम की शिकायत हो जाती है। इसका नतीजा बाद में मानसिक विकलांगता के रूप में सामने आता है। समय रहते इलाज कराने पर ये समस्याएं दूर की जा सकती हैं लेकिन जागरूकता के अभाव में लोग इस बारे में ध्यान नहीं देते और समस्या बढ़ती जाती है।
उन्होंने बताया कि आज अनुवांशिक समस्याओं के साथ-साथ पर्यावरण संबंधी कारक भी चिंता का सबसे बड़ा कारण हैं। यही वजह है कि बच्चों में अटेंशन डेफिसिट, हाइपर एक्टिविटी डिस्आर्डर डायलेक्सिया जैसी समस्याओं की शिकायत हो जाती है। इन कारणों के चलते बच्चे अलग-थलग रहने लगते हैं, दूसरों से बात करने में उन्हें हिचकिचाहट होती है और वह सामान्य बच्चों की तरह उत्साहपूर्वक सीख नहीं पाते क्योंकि उनकी सीखने और समझने की क्षमता भी बाधित हो जाती है। यह समस्या आस्टिम स्पेक्ट्रम डिस्आर्डर कहलाती है।
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