पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब...। यह कहावत तो आपने बचपन में बहुत सुनी होगी, लेकिन अब एक स्टडी ने नई कहावत गढ़ डाली है। पढ़ोगे-लिखोगे, ज्यादा जीओगे। स्टडी के नतीजों के मुताबिक बेहतर शिक्षा प्राप्त लोगों की उम्र कम पढ़े-लिखे लोगों के मुकाबले आमतौर पर ज्यादा होती है। अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में की गई एक रिसर्च ने कुछ आश्चर्यजनक नतीजों का खुलासा किया है। हार्वर्ड के सोशल साइंस डिपार्टमेंट के डीन डेविड कटलर ने बताया कि कॉलेज या स्कूल में बिताए गए एक साल से आपकी जिंदगी में एक और साल बढ़ा जाती है। जबकि कम शिक्षित लोगों के साथ ऐसा नहीं हुआ। हालांकि ये नतीजे हर व्यक्ति पर लागू नहीं होते। लिंग और नस्ल के आधार पर इसमें अंतर पाया गया। यानी कॉलेज जाने वाले एक युवा के नतीजे एक युवती से अलग थे। हालांकि ये अंतर बहुत ज्यादा नहीं पाया गया। तो क्या इसका मतलब यह है कि कम पढ़े-लिखे या अनपढ़ लोगों की उम्र कम हो जाती है? स्टडी के मुताबिक ऐसा नहीं है। दरअसल, शिक्षा व्यक्ति के लाइफस्टाइल पर असर डालती है। रिसर्च में पाया गया कि शिक्षित लोगों का लाइफस्टाइल कुछ ऐसा होता है, जिसमें रिस्क की आशंका कम होती है। कटलर ने कहा कि शिक्षा दुनिया और अपने आप को देखने का नजरिया बदल देती है। कटलर बताते हैं कि शिक्षित व्यक्ति किसी भी चीज को अपनाने से पहले या किसी भी बात पर विश्वास करने से पहले वैज्ञानिक रूप से उस पर विचार करता है। स्कूल में टीचर बच्चों को यही सिखाते हैं कि किसी भी बात पर आंख मूंदकर विश्वास नहीं कर लेना चाहिए। जबकि कम पढ़े-लिखे या अनपढ़ व्यक्ति इन चीजों से वंचित रह जाते हैं। कटलर मिसाल देकर बताते हैं कि शिक्षित और अशिक्षित लोग स्मोकिंग, मोटापा और आलस जैसी चीजों के बारे में अलग-अलग तरह से सोचते हैं। अच्छी शिक्षा प्राप्त लोगों में स्मोकिंग जैसी बुरी आदतें कम पाई गईं। कटलर ने कहा, यह आमतौर पर माना जाता है कि शिक्षित लोग ऐबों से दूर ही रहते हैं। और अगर उनमें किसी प्रकार के ऐब होते भी हैं, तो वे कम होते हैं। जबकि अशिक्षित लोग स्मोकिंग जैसे कुचक्रों की गिरफ्त में बहुत जल्दी आ जाते हैं, क्योंकि उनकी विचार और तर्क शक्ति शिक्षित लोगों से कम होती है। स्मोकिंग से सावधान करने वाले विज्ञापनों पर दुनिया भर में अरबों रुपये हर साल खर्च किए जाते हैं। फिर भी लोग इन पर ध्यान नहीं देते और स्मोकिंग जारी रखते हैं। कटलर कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि लोग इन विज्ञापनों को देखते नहीं हैं। दरअसल, लोग इन पर विचार ही नहीं करते और हर बार इसी तरह अनदेखा कर देते हैं। कॉलेज में पढ़ने वाले लड़कों में स्मोकिंग की आदतें उन लड़कों के मुकाबले मुश्किल से पड़ती हैं, जो कॉलेज तक पहुंच ही नहीं पाते। कटलर कहते हैं, मोटे तौर पर इसे इस तरह समझा जा सकता है कि बेहतर पढ़े-लिखे लोग अपनी सेहत के प्रति भी उतने ही जागरूक होते हैं। चाहे मामला सीट बेल्ट लगाने का हो या मोटापे से सावधानी का, आमतौर पर शिक्षित वर्ग ज्यादा सचेत रहता है। रिसर्च टीम ने इस दौरान अलग-अलग उम्र वर्ग और शिक्षित, कम शिक्षित व अशिक्षित लोगों पर स्टडी की।
- Home-icon
- Research Writing
- _Journals
- __DropDown 1
- __DropDown 2
- __DropDown 3
- _Plagiarism
- _Search Tool
- _Error Page
- Biochemistry
- _Pathways
- _Disorder/disease
- Molecular Biology
- My Youtube
- CSIR-JRF-NET
- _CSIR UGC NET - Life Sciences : Syllabus, Exam Pattern, Eligibility, Age limit, Fellowship
- _CSIR Syllabus-Exam Pattern
- _CSIR- Life Sciences (Pattern and Syllabus)
2 Comments