नई दिल्ली। वह दिन दूर नहीं जब धरती पर एक नहीं, कई कृत्रिम सूर्य अपनी चमक और ऊर्जा बिखरेंगे। दुनिया के कई देशों के वैज्ञानिक कृत्रिम सूर्य के निर्माण की कोशिश में लगे है और इस दिशा में कई महत्वपूर्ण सफलताएं भी हासिल की जा चुकी हैं। वैज्ञानिक यह काम नाभिकीय फ्यूजन के सिद्धांत पर कर रहे हैं।
कृत्रिम सूर्य परियोजना को अमली जामा पहनाने के लिए चीन, भारत, रूस, अमेरिका, जापान और यूरोपीय संघ ने मिलकर अंतरराष्ट्रीय नाभिकीय फ्यूजन रिएक्टर परियोजना शुरू की है। हालांकि इस दिशा में भारत सहित कई देशों के वैज्ञानिक लगे हुए हैं, लेकिन चीन के वैज्ञानिकों ने कृत्रिम सूर्य मामले में खासी प्रगति कर ली है। इससे उम्मीद जताई जा रही है कि कृत्रिम सूर्य के चमकने में अब ज्यादा समय नहीं लगने वाला है।
वैज्ञानिक अनुसंधानों से पता चला है कि सूर्य का ताप नाभिकीय फ्यूजन के परिणामस्वरूप पैदा होता है। इसलिए कोशिश चल रही है कि एक दिन वे इस सिद्धांत पर चलते हुए सूर्य जैसी ऊर्जा पैदा कर सकेंगे।
चीन में निर्मित नए तरह के नाभिकीय फ्यूजन उपकरण में काम शुरू हो गया है। चीन ने वर्ष 1998 से नए तरह के नाभिकीय फ्यूजन रिएक्टर पर अनुसंधान शुरू किया था, जिसका खर्च 20 करोड़ युआन तक रहा। चीन में कृत्रिम सूर्य परियोजना के प्रमुख चीनी राजकीय विज्ञान अकादमी के प्रोफेसर वान ने कहा कि नाभिकीय फ्यूजन की ऊर्जा अतुल्य है, क्योंकि नाभिकीय फिशन का ईधन यूरेनियम है, जिसका पृथ्वी पर बहुत कम भंडार है, लेकिन नाभिकीय फ्यूजन हाइड्रोजन से पैदा होता है। इसका पृथ्वी पर अनंत भंडार है।
अनुमान है कि समुद्र के पानी में भारी हाइड्रोजन का भंडार 450 खरब टन तक है, नाभिकीय फ्यूजन के लिए इतना काफी है। हालांकि अभी नाभिकीय फ्यूजन पैदा करने में अन्य कठिनाइयों को दूर करना बाकी है, क्योंकि नाभिकीय फ्यूजन पैदा करने के लिए 40-50 करोड़ डिग्री ऊंचा तापमान चाहिए। पृथ्वी पर कोई भी सामग्री ऐसे उच्च तापमान को झेलने में समर्थ नहीं है। इस तापमान में हर चीज तुरंत गैस बन जाएगी। इसलिए नाभिकीय फ्यूजन करने के लिए किस तरह का बिजली घर का निर्माण किया जाए, यह कठिन सवाल है।
प्रोफेसर वान के अनुसार, चीनी विशेषज्ञ इस संदर्भ में कोशिश कर रहे हैं। उनका कहना है कि वास्तव में दस करोड़ डिग्री के उच्च तापमान को सहन करने सामग्री भी नहीं है। इसलिए चुंबकीय शक्ति यह काम कर सकती है। इससे नाभिकीय फ्यूजन किया जा सकता है। जिस दिन यह प्रयोग सफल हो गया, उस दिन कृत्रिम सूर्य की अवधारणा परवान चढ़ जाएगी।
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