नई दिल्ली : एक ही इंसान में 2 लोगों का लीवर ट्रांसप्लांट कर सर गंगाराम अस्पताल ने डबल लीवर ट्रांसप्लांटेशन में महारत हासिल कर ली है। अस्पताल के डॉक्टरों का दावा है कि अभी तक उत्तर कोरिया, जर्मनी और टर्की में ही इस तरह के लीवर ट्रांसप्लांट हुए हैं। साउथ एशिया में यह पहला मौका है, जब ऐसा मुश्किल लीवर ट्रांसप्लांट हुआ हो।
पंत अस्पताल के गेस्ट्रो डिपार्टमेंट के हेड डॉ. एस. के. सरीन के मुताबिक विदेशों में तो इस तरह के ट्रांसप्लांट हुए हैं, लेकिन देश में इस तरह का ट्रांसप्लांट उनकी जानकारी में नहीं आया है। इस तरह के मुश्किल ट्रांसप्लांट से भारतीय चिकित्सा क्षेत्र में कामयाबी के नए रास्ते खुलेंगे। शुक्रवार को एक संवाददाता सम्मेलन में सर गंगाराम अस्पताल के चेअरमैन डॉ. बी. के राव ने बताया कि तमिलनाडु के सेलम निवासी 60 वर्षीय के. पी. अप्पू हेपटाइटिस-बी का शिकार थे। इससे उनका लीवर 90 फीसदी तक खराब हो गया। ऐसे में अगर उनका लीवर ट्रांसप्लांट नहीं किया जाता तो उनकी जान जा सकती थी।
अस्पताल में लीवर ट्रांसप्लांटेशन के हेड डॉ. ए. एस. सोइन के मुताबिक अप्पू के परिवार के चार सदस्यों ने उन्हें अपना लीवर देने की पेशकश की। जांच में अप्पू के भतीजे और उसकी पत्नी का लीवर ट्रांसप्लांट के लिए ठीक पाया गया। दोनों से 40-40 फीसदी लीवर काटकर अप्पू का लीवर ट्रांसप्लांट किया गया। अप्पू के भतीजे अरुल कुमार के लीवर का हिस्सा राइट लोब में व भतीजे की पत्नी प्रिया अरुल कुमार के लीवर के हिस्से को लेफ्ट लोब में फिट किया गया। अगर एक ही इंसान से 70 फीसदी लीवर लिया जाता है तो डोनर के लिए खतरा बढ़ जाता है, इसलिए 2 लोगों से लीवर लेकर ट्रांसप्लांट किया गया।
अस्पताल में लीवर ट्रांसप्लांट फिजिशियन डॉ. संजीव सहगल के मुताबिक इस ट्रांसप्लांट को करने में करीब 17-18 घंटे लगे। ट्रांसप्लांट में 14 सर्जनों समेत करीब 40 लोगों के स्टाफ ने हिस्सा लिया। इस ट्रांसप्लांट में कई तरह की चुनौतियां थीं, जिनमें नए लीवर की ब्लड वेसल्स को तय वक्त में जोड़ना, सर्जरी के दौरान 14 घंटे तक अनिसथिशिया देना शामिल है। लेकिन इन सभी चुनौतियों से निबट लिया गया।
पंत अस्पताल के गेस्ट्रो डिपार्टमेंट के हेड डॉ. एस. के. सरीन के मुताबिक विदेशों में तो इस तरह के ट्रांसप्लांट हुए हैं, लेकिन देश में इस तरह का ट्रांसप्लांट उनकी जानकारी में नहीं आया है। इस तरह के मुश्किल ट्रांसप्लांट से भारतीय चिकित्सा क्षेत्र में कामयाबी के नए रास्ते खुलेंगे। शुक्रवार को एक संवाददाता सम्मेलन में सर गंगाराम अस्पताल के चेअरमैन डॉ. बी. के राव ने बताया कि तमिलनाडु के सेलम निवासी 60 वर्षीय के. पी. अप्पू हेपटाइटिस-बी का शिकार थे। इससे उनका लीवर 90 फीसदी तक खराब हो गया। ऐसे में अगर उनका लीवर ट्रांसप्लांट नहीं किया जाता तो उनकी जान जा सकती थी।
अस्पताल में लीवर ट्रांसप्लांटेशन के हेड डॉ. ए. एस. सोइन के मुताबिक अप्पू के परिवार के चार सदस्यों ने उन्हें अपना लीवर देने की पेशकश की। जांच में अप्पू के भतीजे और उसकी पत्नी का लीवर ट्रांसप्लांट के लिए ठीक पाया गया। दोनों से 40-40 फीसदी लीवर काटकर अप्पू का लीवर ट्रांसप्लांट किया गया। अप्पू के भतीजे अरुल कुमार के लीवर का हिस्सा राइट लोब में व भतीजे की पत्नी प्रिया अरुल कुमार के लीवर के हिस्से को लेफ्ट लोब में फिट किया गया। अगर एक ही इंसान से 70 फीसदी लीवर लिया जाता है तो डोनर के लिए खतरा बढ़ जाता है, इसलिए 2 लोगों से लीवर लेकर ट्रांसप्लांट किया गया।
अस्पताल में लीवर ट्रांसप्लांट फिजिशियन डॉ. संजीव सहगल के मुताबिक इस ट्रांसप्लांट को करने में करीब 17-18 घंटे लगे। ट्रांसप्लांट में 14 सर्जनों समेत करीब 40 लोगों के स्टाफ ने हिस्सा लिया। इस ट्रांसप्लांट में कई तरह की चुनौतियां थीं, जिनमें नए लीवर की ब्लड वेसल्स को तय वक्त में जोड़ना, सर्जरी के दौरान 14 घंटे तक अनिसथिशिया देना शामिल है। लेकिन इन सभी चुनौतियों से निबट लिया गया।
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